पुपरी - मंसूरी समाज इतिहास और मूल

मंसूरी समाज इतिहास और मूल



मंसूरी समाज के लोग भारत के गुजरात राजिस्थान उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश बिहार राज्य में पाए जाने वाले एक भारतीय समुदाय हैं। यह समुदाय अफगानिस्तान से कपास के खेती और कपास उद्योगों के व्यापार के लिए भारत आया था और उन्होंने भारत के कई क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना की।

《《《इतिहास और मूल》》》

समुदाय में स्थानीय धर्मान्तरित और विदेशियों को शामिल किया गया है जो भारतीय  उपमहाद्वीप के बाहर चले गए हैं और सूती जुने / व्यापार के पारंपरिक कब्जे में शामिल हैं। मंसूरी नाम सूफी शहिद मंसूर हल्लाज के  द्वारा दिया गया है मंसूरी एक मुस्लिम समुदाय है जिसमे अरब के शेख से लेकर अफगानिस्तान के पठान जाती के लोग ओर हिन्दुस्तान मे हिन्दू राजपूत जाती के लोग शामिल है कुछ मंसूरी हिन्दू राजपुत से मुसलमानों मे परिवर्तित हो गये है। उन लोगों का मूल राजपूत जाति में विश्वास करता है।

इतिहास के अनुसार, वे रान सिंह के रूप में राजस्थान से गुजरात आए और यहां पर रहते थे। आज भी, उनकी मुख्य जाति – राव, देवड़ा, चौहान, भाटी, टानक बेलिम,कचावा ,राना ,बडगुजर आदि जो कि एक राजपूत वंश भी है [2]। यह समुदाय मुख्य रूप से भारत अफगानिस्तान पाकिस्तान बांग्लादेश चीन ईरान इराक़ तुर्की यमंन ओर ओमान मे फैला हुआ है यह मुस्लिम समुदाय द्वारा ((बेहन्ना, धूना, पिंजरी, पिंडारी,हल्लाज , धुनकर, मंसूरी)) कहा जाता था और यह भी उल्लेख किया गया है भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद उनमें से ज्यादातर ने पठान जैसे उनके नाम बदल दिए, उनमें से कुछ को तिलि में परिवर्तित किया गया.

टीपू सुल्तान इस समुदाय से संबंधित है.

कुछ समय पहले इस समुदाय में उपनाम के रूप में कोई नाम नहीं, अब कुछ लोग पठान का उपयोग करते हुए कुछ और एक मथुरी का उपनाम के रूप में उपयोग करते हैं लेकिन वे पाथण का इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि उनके पूर्वजों का पथन था.

मंसूरी एक लकब है जो ईरान शहर मे पैदा हुए सूफी शहिद मंसूर हल्लाज के नाम को अपना सरनेम लगते है मंसूरी समुदाय भारत भर मे बसे हुए है जिन्हें भारत मे 53 नमो से जाना जाता है कुछ के पूर्वज अरब ओर ईरान के शेख थे तो कुछ के अफगानिस्तान के पठान कुछ फारसी तो कुछ हिन्दू राजपूत योद्धा थे जिनके गोत्र (खानदान) से पता लगता है भारत मे 53 गोत्र मे यह समुदाय है.

मुख्य रूप से दो तरह के मंसूरी है जिसमे अजमेरी (तेल मंसूरी) तो दूसरी चंदेरीवाल (पिंजारा, पिंडारी) चंदेरी वाल मंसूरी ने मुग़ल मुसलमान के जमाने मे चंदेरी सबसे पहले फतह किया था तभी से ये चंदेरीवाल कहलाये अंग्रेजो के जमाने मे मुस्लिम समुदाय कई भागो मे बट् गया था सभी मुसलमान अपनी गोत्र लगाते थे  बिरादरी के बुजुगो ने मिलकर इस बिरादरी को एक नाम दिया मंसूरी जो सूफी शाहिद मंसूर हल्लाज के नाम से मशुर है !

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