पुपरी -तीन तलाक़, हलाला पर अपना गला सुखाने वाले लोगों को नियोग प्रथा के बारे में ज़रूर जानना चाहिए|

ऐसा देश है जहाँ लोगों के पास खाली समय बहुत ज़यादा है, यहाँ लोग फटे में टांग डालने के लिए हर समय तैयार बैठे रहते हैं, अपनी परेशानी से यहाँ कोई आप को परेशान मिलेगा जो भी परेशान है वह औरों के मामलों, मसलों को लेकर है, यहाँ धार्मिक चर्चाएं भी बहुत होती है, लोगों को धर्म का ज्ञान धार्मिक, कानूनी जानकारों से भी ज़ियादा है, अपने मसलों को देखे बिना औरों पर आछेप, आरोप लगाने का यहाँ चलन है, तलाक़ कब होती है, कैसे होती है, एक बार कहने से होगी या तीन बार, हलाला क्या है, इस का किस मज़हब से सम्बन्ध है, इन मुद्दों पर वह लोग बात करते हैं जिन्हें इस्लाम धर्म तो दूर अपने भी धर्म का कोई ख़ास ज्ञान नहीं है|


तीन तलाक़, हलाला पर अपना गला सुखाने वाले लोगों को नियोग प्रथा के बारे में ज़रूर जानना चाहिए|


सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक को लेकर महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा जारी है। बहरहाल अब यही मौक़ा है कि मुसलमानों के पर्सनल ला पर हमला कर दिया जाए और समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में क़दम उठाया जाए। कुछ टीवी चैनलों ने हलाला के मुद्दे पर बहस शुरू कर दी है और कुछ लेखों में भी कहा गया कि अब इस प्रकार की सभी रीतियों को कटघरे में खड़ा कर दिया जाए।


मज़े की बात तो यह है कि बेगाने की शादी में अब्दुल्लाह की तरह दीवानगी दिखाने में वह संगठन सबसे आगे हैं जिन पर इस प्रकार की अत्यंत भयानक कुरीतियों के समर्थन का आरोप है। यही नहीं यह संगठन इतने भयानक हैं कि वह अपने समाज की इन कुरीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले की हत्या तक कर देते हैं। इस क्रम में नियोग प्रथा का नाम लिया जा सकता है।


वेद में नियोग के आधार पर एक स्त्री को ग्यारह तक पति रखने और उन से दस संतान पैदा करने की छूट दी गई है. नियोग किन-किन हालतों में किया जाना चाहिए, इसके बारे में जानने के लिए आगे पढ़े—-


नियोग प्रथा मनुस्मृति प्रथा है जिसमें कहा गया है कि नियोग पति द्वारा संतान उत्पन्न न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा उपाय है जिसके अनुसार स्त्री अपने देवर अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है। यदि पति जीवित है तो वह व्यक्ति स्त्री के पति की इच्छा से केवल एक ही और विशेष परिस्थिति में दो संतान उत्पन्न कर सकता है। हिन्दू प्रथा के अनुसार नियुक्त पुरुष सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए। इसी विधि द्वारा महाभारत में वेद व्यास के नियोग से अम्बिका तथा अम्बालिका को क्रमशः धृतराष्ट्र तथा पाण्डु उत्पन्न हुये थे।


वेद में नियोग के आधार पर एक स्त्री को ग्यारह तक पति रखने और उन से दस संतान पैदा करने की छूट दी गई है. नियोग किन-किन हालतों में किया जाना चाहिए, इसके बारे में मनु ने इस प्रकार कहा है :


विवाहिता स्त्री का विवाहित पति यदि धर्म के अर्थ परदेश गया हो तो आठ वर्ष, विद्या और कीर्ति के लिए गया हो तो छ: और धनादि कामना के लिए गया हो तो तीन वर्ष तक बाट देखने के पश्चात् नियोग करके संत्तान उत्पत्ति कर ले. जब विवाहित पति आवे तब नियुक्त छूट जावे


नियोग प्रथा के बारे में पुस्तक लिखने वाले उपन्यासकार पेरुमल मुरुगन की हत्या तक कर दी गई। मुरुगन ने उपन्यास लिखा तो कट्टरपंथी हिंदू संगठनों में हाहाकार मच गया। मुरुगन का मामला अदालत में पहुंचा तो अंत में मद्रास हाई कोर्ट ने पेरुमल मुरुगन के ह़क में फ़ैसला सुनाया। इस तमिल लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग करती जनहित याचिकाओं को खारिज करते हुए अदालत ने नमक्कल जिला प्रशासन को भी फटकार लगाई जिसने मुरुगन पर अपनी किताब को वापस लेने का दबाव बनाया था।


पेरुमल मुरुगन का उपन्यास ‘मधोरूबगन‘ है। यह उपन्यास नमक्कल जिले के थिरूचेंगोड़े शहर के अर्धनारीश्वर मंदिर में होने वाले धार्मिक उत्सव ‘नियोग‘ के बारे में बात करता है। उपन्यास की निःसंतान विवाहित नायिका अपने पति की मर्जी के बिना भी नियोग नामक धार्मिक प्रथा को अपनाकर संतान पैदा करने का फैसला करती है. स्त्री निर्णय की स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करती इस किताब का कट्टरपंथी हिंदुओं ने कड़ा विरोध किया. इसके बाद मुरुगन ने लेखन से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया था. अपने फेसबुक पेज उन्होंने लिखा, ‘मर गया पेरुमल मुरुगन. वह ईश्वर नहीं कि दोबारा आए. अब वह पी मुरुगन है, बस एक शिक्षक. उसे अकेला छोड़ दो।


लेकिन उन्हें परेशान कर रहे कट्टरपंथी तत्वों को इससे भी संतोष नहीं हुआ। तमिलनाडु के नमक्कल जिले में रहने वाले इस लेखक को सामाजिक रूप से अलग-थलग करने की कोशिशें हुईं। उनके दोस्तों और रिश्तेदारों को धमकाया गया. इस सबसे परेशान होकर नमक्कल के सरकारी डिग्री कॉलेज में पढ़ाने वाले पेरुमल और उनकी पत्नी ने अपने तबादले की अर्जी दे दी।


उपन्यासकार ने इस बात की वकालत की थी कि नियोग के लिए पुरुष के चयन में महिला की मर्ज़ी चलनी चाहिए। उपन्यास में टिप्पणी की गई कि वे चाहते हैं कि बच्चा किससे पैदा करना है, यह तय करने का हक सिर्फ पुरुष यानी पिता का है। कोई स्त्री यह कैसे तय कर सकती है कि वह किस पुरुष से बच्चा पैदा करना चाहती है?


सवाल कई हैं. पहला, क्या विरोध करने वाले नियोग के परंपरागत रूप को तोड़ने से खफा हैं? मतलब कि क्या नाराजगी इस बात से है कि स्त्री ने स्वयं नियोग के लिए पुरुष चुन लिया। वे चाहते हैं कि बच्चा किससे पैदा करना है, यह तय करने का हक सिर्फ पुरुष यानी पिता का है। कोई स्त्री यह कैसे तय कर सकती है कि वह किस पुरुष से बच्चा पैदा करना चाहती है? क्या यह पुरुष के सदियों पुराने अधिकार के छिनने का मातम है?


या फिर वे नियोग को ही बुरा मानते हैं? यदि वे नियोग को बुरा मान रहे हैं तो वे अपनी पूरी हिंदू संस्कृति और परंपरा को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। क्या वे सच में ऐसा करना चाहते हैं? चाह सकते हैं?


तीसरा, वे संस्कृति और सभ्यता के अभिन्न अंग के रूप में तो नियोग को पूज्य मानते हैं, लेकिन व्यवहार में उसे घटित होते हुए नहीं देख सकते। यह ठीक वैसा ही है कि किसी बिनब्याही मां की फिल्म तो लोग देख सकते हैं, नायिका के विपरीत हालात पर इमोशनल भी हो जाते हैं, लेकिन व्यवहार में बिनब्याही मां की कल्पना भी नहीं कर सकते।


हलाला पर शोर मचाने वालों को ज़र एक नज़र नियोग पर भी डाल लेना चाहिए।



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नियोग प्रथा पर एक नज़र—–!!!


हिन्दू धर्म में एक रस्म है जिसे नियोग कहते है, इस प्रथा के अनुसार किसी शादीशुदा महिला को बच्चे पैदा न हो रहे हो तो वो किसी भी ब्राह्मण पुरुष से नियोग प्रथा के अनुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकती है!


इसकी शर्त ये है के वह उसके पति के घर में उसके बिस्तर पर ही इस रस्म को निभाना होगा और इस प्रथा के तहत दस बच्चे तक पैदा किया जा सकते है!
इस प्रथा के अनुसार नियोग करने वाली औरत ब्राह्मण न हो बल्कि निचली ज़ात से हो और नियोग करने वाला सिर्फ ब्राह्मण ही हो सकता है उसे नियोग दाता कहते है !


आओ अब नियाेग के बारे में बात करते हैं..
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वेदाे में नियाेग के अधार पर ग्यारह पत्ति और 10 बच्चे पैदा करने कि छुट दी गई है, नियाेग किन – किन हालाताें में किया जाना चाहीये उसकी व्याख्या मनु ने इस प्रकार कि है :-
“अगर स्त्री का पती अगर धर्म के लिये परदेश गया हाे ताे स्त्री आठ बर्षाें तक उसका इंतजार करे, अगर विधा और कृती के लिये गया हाे छ: बर्षाे तक इंतजार करे, अगर धन कमाने गया हाे ताे तीन बर्षाें तक इंतजार करे, अगर पती निम्नलिखित समय तक वापस ना आये ताे दुसरे पुरुष के साथ नियाेग कर बचे पैदा कर ले ” !
” अगर स्त्री काे गर्भ ना रुके, अगर बच्चे हाेकर मर जाये, या सिर्फ कन्यायें जन्म देने वाली हो तो दुसरी स्त्री से नियाेग कर संतान पैदा करे ” !


” हे पतिव्रता नारी देवर कि कामना करने वाली तुम पत्ति और देवर दाेनाे के साथ मिलकर सम्भाेग कर और एक शक्तिशाली पुत्र काे जन्म दे ! अर्थवेद : २४/२/
१८ ! ऋग्वेद : २०/२/४०
” विध्वा या विवाहिता स्त्री अपने देवर काे पति के समान अधिकार दे और उनसे संतान सुख कि प्राप्ति करे ” ऋग्वेद : १०/१८/८ !
” अगर पुरुष नपुंसक हाे या वह संतान नही चाहता हाे ताे संतान कि कामना करने वाली हे नारी तु पराये मर्द से सम्भाेग कर और संतान उत्पन कर ” ऋग्वेद : २५/३७/२२ !…


अब नियाेग से उत्पन हाेने वाले कुछ व्यक्तियाें कि व्याख्या करता हुं..
राजा पाण्डु की दाे पत्नियां थी कुन्ति और मादरी जिन्हाेने नियाेग से ही पांडवाें काे जन्म दिया था !
कुन्ती ने धर्म के साथ नियाेग किया जिसके बाद युधिष्ठिर का जन्म हुआ, उसके बाद कुन्ति ने इन्द्र देव तथा वायुदेव से नियाेग (सम्भाेग) किया जिसके बाद अर्जुन और भीम का जन्म हुआ !
पांडु कि दुसरी पत्नि मादरी ने भी नियाेग करने कि इक्षा जताई और उसने अश्विनिकुमाराें संग नियाेग (सम्भाेग) किया और नकुल और सहदेव काे जन्म दिया !


आपकाे बताते चलें कि कुन्ती ने पांडु से विवाह के पहले सुर्यदेव से नियाेग किया था जिसके बाद कर्ण का जन्म हुआ था लेकिन अविवाहित हाेने के वजह से कुन्ति ने कर्ण काे नदी में बहा दिया था !
..
अगर बोलू ताे बोलता रह जाऊंगी, लेकिन मैं किसी का मजाक नही बनाना चाहता, इसलिए उंगली मत करो इसमें आपकी भलाई है।




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#तीन तलाक़ पर अपना खून सुखा रहे लोगों को “नियोग प्रथा” के बारे में अवश्य जानना चाहिए!


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• #क्या_है_नियोग 
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“मर्द नपुंसक है नामर्द है बच्चा पैदा करने के काबिल नहीं है” तो उसकी पत्नी को दोसरी शादी करने की आज्ञा नहीँ है ना “तलाक” जैसा कोई नियम है, हां वह औरत किसी भी सेम गोत्र के आदमी से बिना शादी विवाह के हमबिस्तरी करके गर्भ धारण कर सकती है मतलब बच्चा पैदा करने के लिए यह अय्याशी जैसा फार्मूला नियोग कर सकती है :


“#धर्म_के_अनुसार”
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इस सुविधा को ‘नियोग’ के नाम से जाना जाता है। जिसका आशय किसी भी प्रकार के यौन आनंद से ना होकर सिर्फ और सिर्फ संतान को जन्म देने से है। नियोग के लिए किस पुरुष को चुना जाएगा, इसका निर्णय भी उसका पति ही करता था। अब यह कौन से थर्मा मीटर से नाप जायेगा कि बिना आनंद के वह आदमी महिला से सम्भोग किया या आनंद लेकर किया ?


“#बहुत_पुरानी_परम्परा_है_यह”
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‘नियोग’ भारतीय समाज में व्याप्त एक बेहद प्राचीन परंपरा है, जिसकी उपस्थिति रामायण से लेकर महाभारत काल तक मिलती है। आज भी बहुत से भारतीय समुदायों में ‘नियोग’ द्वारा संतानोत्पत्ति की प्रक्रिया को पूरी धार्मिक परंपरा के अनुसार अपनाया जा रहा है।


“#मनु_स्मृति_में_उल्लेख”
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सर्वप्रथम नियोग को मनुस्मृति में उल्लिखित किया गया था। जिसके अनुसार यह एक ऐसी प्रक्रिया है जब पति की अकाल मृत्यु या उसके संतान को जन्म देने में अक्षम होने की अवस्था में स्त्री अपने देवर या फिर किसी समगोत्रीय, उच्चकुल के पुरुष के द्वारा गर्भ धारण करती है।


“#जरूरी_है_पति_की_इच्छा”
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स्त्री अपने पति की इच्छा और अनुमति मिलने के बाद ही ऐसा कर सकती है। सामान्य हालातों में वह बस एक ही संतान को जन्म दे सकती है लेकिन अगर कोई विशेष मसला है तो वह नियोग के द्वारा दो संतानों को जन्म दे सकती है।


“#जायज_संतान”
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नियोग के द्वारा जन्म लेने वाली संतान, नाजायज होने के बावजूद भी जायज कहलाती है। उस पर उसके जैविक पिता का कोई अधिकार ना होकर उस पुरुष का अधिकार कहलाया जाएगा, जिसकी पत्नी ने उसे जन्म दिया है।


“#नियोग_की_शर्तें”
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नियोग की प्रक्रिया तमाम शर्तों के बीच बंधी है। जैसे कि कोई भी महिला नियोग का प्रयोग केवल संतान को जन्म देने के लिए ही कर सकती है ना कि यौन आनंद के लिए, नियोग के लिए नियुक्त किया गया पुरुष धर्म पालन के लिए ही इसे अपनाएगा, उसका धर्म स्त्री को केवल संतानोत्पत्ति के लिए सहायता करना होगा, संतान के उत्पन्न होने के बाद नियुक्त पुरुष उससे किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं रखेगा।


“#वासना_रहित”
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आपको बता दें कि नियोग से पहले संबंधित स्त्री और नियुक्त किए गए पुरुष के शरीर पर घी का लेप लगा दिया जाता था ताकि उनके भीतर किसी भी प्रकार की वासना जाग्रत ना हो सके।


“#नियोग_की_महत्ता”
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भारतीय पौराणिक इतिहास में नियोग की महत्ता को इस बात से बेहतर समझा जाता है कि जिस प्रकार रामायण के बिना एक आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती उसी प्रकार नियोग के बिना महाभारत की कल्पना कर पाना असंभव है।


“#महाभारत_में_उल्लेख”
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महाभारत में धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर नियोग से पैदा हुए थे जिसमे ऋषि वेद व्यास नियुक्त पुरुष थे। बाद में पाण्डु संतान देने में असमर्थ होने के कारण पाँचों पांडव नियोग से पैदा हुए थे जिसमे प्रत्येक नियुक्त पुरुष अलग-अलग देवता थे।
अब आप ही तय करें की कोई पुरुष जब अपनी पत्नी की महत्वाकांक्षाओं को पुरा करने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से असमर्थ रहता है और इसके बावजूद उसे पती-पत्नी के मिलन का परिणाम बिना किसी क्रियाकलापों के चाहिए होता है तो वह किस प्रकार अपनी पत्नी को किसी दुसरे वयक्ति के साथ हमबिस्तरी का फरमान सुनाता है जिसका अधिकार केवल उसे होता है। तलाक़ और हलाला के शरायत को जाने बगैर दिनभर इस्लामी शरीयत पर ऊंगली उठाने वाले इस प्रक्रिया को क्या कहेंगे ?


क्या इस प्रथा द्वारा महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं होता था ?



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